कुंडली के चतुर्थ भाव में अष्टमेश का प्रभाव

कुंडली के चतुर्थ भाव में अष्टमेश का प्रभाव

1)कुंडली के चतुर्थ भाव में अष्टमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम अष्टम भाव और चतुर्थ भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। अष्टम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से नवम भाव में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का नवम भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2)यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्थित हो तब हमें इसका विश्लेषण बड़ी ही सतर्कता से करना पड़ता है। क्योंकि अष्टम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से नवम भाव में स्थित है जो कि एक अच्छी प्लेसमेंट मानी जा सकती है, परंतु सुख के भाव में दु:स्थान के स्वामी का बैठना अच्छा नहीं माना जा सकता है। साथ ही अष्टम भाव का चतुर्थ भाव में स्थित होना अष्टम भाव के लिए भाग्यशाली है। यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक दीर्घायु होगा। परंतु यदि पीड़ित हो तब यह जातक के स्वास्थ्य के लिए और आयु के लिए उत्तम नहीं माना जा सकता है। अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक को अंतर्ज्ञान की शक्ति प्राप्त होती है, परंतु यदि पीड़ित हो तब जातक अनहोनी से भयभीत रहता है। जैसा कि यह दो सामान्य उदाहरण से स्पष्ट है कि फल पूरी तरह अष्टम भाव की स्थिति पर निर्भर करेगा।

3) चतुर्थ भाव प्रॉपर्टी और रियल स्टेट से संबंधित होता है। अष्टम भाव पैतृक संपत्ति से संबंधित होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्थित हो तब जातक को उत्तम पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है। परंतु अष्टम भाव दु:स्थान भी है, अतः जातक अपने पैतृक संपत्ति से सुख प्राप्त करेगा या नहीं ? यह एक संशय का विषय हो सकता है। जातक को घर का सुख नहीं प्राप्त होगा। जातक का जीवन भी सुखमय नहीं होगा। जातक एक स्थान से दूसरे स्थान पर विभिन्न कारणों से भटकता रह सकता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्थित हो तब जातक प्रॉपर्टी से संबंधित कार्य कर सकता है। यदि पीड़ित हो तब जातक के प्रॉपर्टी में धन नाश की संभावना होती है।

4) चतुर्थ भाव घर या घरेलू सुख से संबंधित होता है। अष्टम भाव जीवन में आने वाली बाधाओं और परेशानियों का कारक होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्थित हो तब जातक को उत्तम घरेलू सुख की प्राप्ति नहीं होती है। जातक को मानसिक शांति की भी प्राप्ति नहीं होती है। जातक का घरेलू जीवन कोलाहल और झगड़े से पूर्ण होता है। जातक को वैवाहिक जीवन का भी सुख प्राप्त नहीं होता है।

5) चतुर्थ भाव मन से संबंधित होता है। अष्टम भाव छिपे हुए या गुप्त भय से संबंधित होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्थित हो तब जातक का मन स्थिर नहीं होता है और जातक को मानसिक शांति नहीं मिलती है। जातक अनहोनी और अनचाही घटनाओं से भयभीत रह सकता है। जातक मानसिक रूप से उग्र हो सकता है या मानसिक रूप से खतरनाक प्रवृत्ति का हो सकता है। जातक का मन नकारात्मक विचारों से भरा हो सकता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में शुभ स्थिति में हो और मन और बुद्धि का कारक चंद्रमा और बुध कुंडली में उत्तम स्थिति में हो तब जातक को छिपी हुई या गुप्त मानसिक शक्तियां प्राप्त होती है।

6) चतुर्थ भाव स्टडी से संबंधित होता है। अष्टम भाव रिसर्च से संबंधित होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्थित हो तब जातक रिसर्च से संबंधित स्टडी करने की ओर प्रेरित हो सकता है। जातक किसी भी चीज को गहराई से जानने का इच्छुक होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में शुभ स्थिति में ना हो तब जातक विभिन्न प्रकार के परेशानियों के कारण अपनी पढ़ाई में बाधा का अनुभव करता है।

7) अष्टम भाव गुप्तांगों से संबंधित होता है। चतुर्थ भाव मन से संबंधित होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में स्थित हो तब जातक कामुक प्रवृत्ति का व्यक्ति हो सकता है। यदि शुभ स्थिति में हो तब जातक आध्यात्मिक और धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है। ‌

8) चतुर्थ भाव का स्वामी अष्टम भाव के स्वामी के साथ चतुर्थ भाव में स्थित हो तब यह जातक के लिए उत्तम नहीं माना जा सकता है। जातक अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। जातक को अपने घरेलू सुख में, वाहन के सुख में, मानसिक सुख में, एजुकेशन से संबंधित सुख में, परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जातक की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है और जातक को घरेलू सुख भी अच्छा नहीं प्राप्त होता है। यदि शुभ स्थिति में हो तब जातक उच्च शिक्षा और रिसर्च से संबंधित शिक्षा प्राप्त करता है। जातक आध्यात्मिक व्यक्ति होता है और आध्यात्मिक क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त करता है।

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