कुंडली के नवम भाव में सप्तमेश प्रभाव

कुंडली के नवम भाव में सप्तमेश प्रभाव

1) कुंडली के नवम भाव में सप्तमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम सप्तम भाव और नवम भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करते हैं। सप्तम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से तृतीय स्थान में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का तृतीय भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

2) सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में शुभ नहीं माना जाता है। नवम भाव एक धर्म त्रिकोण होता है, सप्तम भाव काम त्रिकोण होता है। अतः सामाजिक मान्यता के अनुसार किसी धर्म स्थान और काम स्थान का संबंध उत्तम नहीं माना जाता है। सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में जातक को धर्म से विमुख कर सकता है और भौतिकवादी जीवन की ओर बहुत ज्यादा झुकाव दे सकता है। परंतु आज के सामाजिक परिपेक्ष में आम जनता के द्वारा इसे बहुत ज्यादा खराब भी नहीं माना जाता है।

3) नवम भाव पिता का कारक भाव होता है। सप्तम भाव मारक भाव होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में शुभ स्थिति में ना हो तब यह जातक के पिता के लिए मारक हो सकता है। जातक के पिता को स्वास्थ्य से संबंधित समस्या हो सकता है। जातक और जातक के पिता के मध्य अलगाव जैसी स्थिति या एक दूसरे से अलग अलग रह सकते हैं। जातक के पिता विदेशी भूमि में निवास कर सकते हैं। जातक के पिता को विदेशी भूमि में सफलता प्राप्त होती है। यदि नवम भाव का स्वामी कमजोर हो और सप्तम भाव पापी ग्रह के संपर्क में हो तब यह जातक के पिता की आयु के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। यदि उत्तम स्थिति में हो तब जातक के पिता धनी और समृद्ध होते हैं।

4) सप्तम भाव जातक की पत्नी से संबंधित होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो तब जातक का पत्नी का स्वभाव उत्तम होता है। जातक की पत्नी धार्मिक महिला होती है और पारंपरिक रीति-रिवाजों को अनुसरण करती है। जातक को अपनी पत्नी से जीवन में उत्तम सलाह प्राप्त होती है। जातक विवाह केए उपरांत उत्तम सफलता प्राप्त करता है अर्थात जातक की पत्नी जातक के लिए भाग्यशाली होती है। यदि सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में शुभ स्थिति में ना हो पीड़ित हो और पापी ग्रह के प्रभाव में हो तब यह जातक के वैवाहिक जीवन की खुशियों में ग्रहण लगाने का काम कर सकता है। जातक के अपनी पत्नी के साथ विवाद या मतभेद हो सकते हैं। अगर बुरी तरह पीड़ित हो तब नौबत तलाक तक भी आ सकती है। साधारण रूप से सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में उत्तम वैवाहिक जीवन देता है।

5) नवम भाव पंचम भाव का भावत भावम भाव होता है। सप्तम भाव पंचम भाव से तृतीय स्थान होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो तब यह जातक के संतान के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। जातक की संतान को स्वास्थ्य से संबंधित समस्या दे सकता है। यदि कुंडली में गुरु भी पीड़ित हो तब यह जातक के संतान के लिए नकारात्मक फल देता है।

6) सप्तम भाव काम स्थान होता है। नवम भाव हमारे आचार विचार का कारक भाव होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में हो तब जातक का चरित्र उत्तम नहीं होता है। जातक कामवासना की ओर आकर्षित होता है। जातक स्त्री संदर्भ में भाग्यशाली होता है।

7) सप्तम भाव और नवम भाव दोनों यात्रा के कारक भाव होते हैं। यदि सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो तब, जातक अपने जन्म स्थान से बहुत दूर के स्थान को यात्रा के लिए जा सकता है। जातक विदेश यात्रा पर जा सकता है। जातक का भाग्य विदेशी भूमि पर अच्छा होता है। जातक धार्मिक यात्राओं के लिए या अपनी पढ़ाई के लिए या व्यापारिक कारणों से भी यात्रा कर सकता है।

8) सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित तब यह जातक की मानसिक शांति के लिए शुभ नहीं माना जा सकता। जातक का मन अस्थिर प्रवृत्ति का होता है। जातक मानसिक तनाव का सामना करता है।

9) यदि सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव के स्वामी के साथ नवम भाव में हो तब यह राजयोग का निर्माण करता है। सप्तम भाव का स्वामी यदि नवम भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक विवाह के उपरांत भाग्यशाली होता है। जातक को विवाह में उत्तम धन की प्राप्ति होती है। जातक अपने जीवन में अकूत संपत्ति अर्जित करता है। जातक धार्मिक व्यक्ति होता है और धार्मिक यात्राओं की यात्रा करता है। साथ ही जातक धार्मिक यात्राओं पर दान या धार्मिक स्थानों के लिए दान भी करता है। जातक ईमानदार और सच्चा होता है। जातक की पत्नी भी ईमानदार और उत्तम चरित्र वाली महिला होती है। जातक को विदेशी भूमि से अच्छी सफलता प्राप्त होती है। जातक को समाज में अच्छा नाम और प्रसिद्धि प्राप्त होती है। यदि सप्तम भाव का स्वामी नवम भाव में शुभ स्थिति में ना हो तब शुभ फल कम होते हैं और यह जातक के वैवाहिक जीवन में परेशानी का कारण बन सकता है। जातक अनैतिक कार्यों में लिप्त हो सकता है।

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