कुंडली के पंचम भाव में सप्तमेश का प्रभाव
1)कुंडली के पंचम भाव में सप्तमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम सप्तम भाव और पंचम भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। पंचम भाव सप्तम भाव से एकादश स्थान है और सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का एकादश भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।
2) सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में शुभ नहीं माना जाता है। क्योंकि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित होने के कारण जातक के जीवन में वैवाहिक जीवन से संबंधित कई प्रकार की समस्या आ सकती है। सप्तम भाव के दो प्रमुख कारकत्व होते हैं, पहला विवाह और दूसरा मारक गुण। सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में इन दोनों प्रमुख कारकों के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। जीवन में एक से अधिक विवाह, लव अफेयर इत्यादि के कारण समस्या हो सकती है। साथ ही सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब सप्तम भाव को नैसर्गिक बल प्राप्त हो जाता है अतः इसकी मारक क्षमता भी बढ़ जाती है।
3) सप्तम भाव विवाह का कारक भाव है। पंचम भाव लव या प्रेम का कारक भाव है। यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक की प्रेम विवाह की संभावना बन सकती है। पंचम भाव जातक की मानसिकता से संबंधित होता है। सप्तम भाव एक काम त्रिकोण है, अतः जातक कामुक प्रवृत्ति का व्यक्ति हो सकता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी तामसिक ग्रहों के प्रभाव में हो तब जातक के एक से अधिक प्रेम संबंध या अफेयर्स हो सकते हैं। जातक के एक से अधिक विवाह की भी संभावना बन सकती है। यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में पीड़ित हो तब जातक का वैवाहिक जीवन उत्तम नहीं होता है। जातक के विवाह में देरी की संभावना, विलंब की संभावना या जातक की अविवाहित रहने के भी योग बन सकते हैं। यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक की जल्दी शादी हो जाती है और जातक की पत्नी उत्तम स्वभाव की और धनी और संपन्न परिवार से संबंध रखती है।
4) सप्तम भाव जातक की पत्नी से संबंधित होता है, और पंचम भाव सप्तम भाव से एक आदर्श स्थान है। यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में पीड़ित हो तब जातक की पत्नी के स्वास्थ्य के लिए यह उत्तम नहीं माना जा सकता है। फलदीपिका के अनुसार यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक अपनी पत्नी की मृत्यु का सामना करता है या जातक को अपने पुत्र का सुख प्राप्त नहीं होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक की पत्नी जातक के लिए भाग्यशाली होती है या जातक को विवाह के उपरांत समृद्धि की प्राप्ति होती है।
5)पंचम भाव संतान का कारक भाव होता है। सप्तम भाव पंचम भाव से तृतीय स्थान है और जातक के लिए मारक स्थान भी है। यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब यह संतान के लिए शुभ नहीं माना जाता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में पीड़ित हो और पंचमेश की स्थिति भी शुभ ना हो तब जातक को संतान में विलंब की संभावना होती है या जातक के प्रजनन क्षमता पर यह बुरा प्रभाव डालती है। जातक की संतान की अलगाव या मृत्यु की भी संभावना बनती है। यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक की संतान उत्तम होती है। जातक की संतान जातक के लिए भाग्यशाली होता है।
6) सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक धनी और समृद्ध होता है। जातक दूसरों से आदर और सम्मान प्राप्त करता है। जातक गुणी और सुखी व्यक्ति होता है। जातक के पास सभी प्रकार के सांसारिक सुख सुविधा उपलब्ध होता है। जातक विद्वान व्यक्तियों के संपर्क में रहता है। जातक दयालु और उत्तम प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है।
7)यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव के स्वामी के साथ सप्तम भाव मे हो तब जातक अपनी पत्नी के साथ और बच्चों के साथ सुखी जीवन व्यतीत करता है। जातक धनी होता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में शुभ स्थिति में ना हो तब यह जातक की पत्नी और संतान को स्वास्थ्य से संबंधित समस्या दे सकता है। जातक का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता है। जातक की संतान जातक से दूर किसी स्थान पर निवास कर सकते हैं।