कुंडली के प्रथम भाव में नवमेश का प्रभाव
1) कुंडली के प्रथम भाव में नवमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम प्रथम भाव और नवम भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करते हैं। नवम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से पंचम भाव में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का नवम भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करते हैं।
2) नवम भाव और प्रथम भाव एक दूसरे से नव पंचम संबंध स्थापित करते हैं, जो कि एक उत्तम संबंध माना जाता है। नवम भाव भाग्य का कारक होता है और प्रथम भाव जातक के स्वयं का कारक होता है। अतः यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक भाग्यशाली होता है। प्रथम भाव स्वयं की मेहनत और क्षमता का कारक भाव होता है। अतः नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक को अपनी मेहनत का निश्चित ही अच्छा फल मिलता है और इसमें जातक का भाग्य जातक का साथ देता है। नवम भाव को लक्ष्मी स्थान भी माना जाता है, अतः नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक के पास अच्छी समृद्धि और संपदा होती है।
3) नवम भाव कुंडली का सबसे प्रभावशाली धर्म स्थान होता है और धर्म का कारक भाव भी होता है। यदि प्रथम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित हो तब जातक धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है। जातक धार्मिक गतिविधियों में रुचि लेता है। जातक को वेद वेदांग और इसी प्रकार के शास्त्रों का उत्तम ज्ञान होता है। जातक को अपने पिता या गुरु से या किसी आध्यात्मिक व्यक्ति से मंत्र की दीक्षा भी प्राप्त होती हो सकती है। जातक को मंत्रों का अच्छा ज्ञान होता है।
4)नवम भाव पिता का कारक भाव होता है। यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक के पिता धार्मिक प्रवृत्ति के, दयालु प्रवृत्ति के और अच्छे विचारों वाले व्यक्ति होते हैं। जातक के पिता को धर्म शास्त्रों की अच्छी जानकारी हो सकती है। जातक और जातक के पिता के संबंध उत्तम होते हैं। जातक को अपने पिता से जीवन में अच्छी सहायता प्राप्त होती है। जातक को अपने पिता की पैतृक संपत्ति भी प्राप्त होती है। जातक अपने पिता का एक अच्छा वारिस सिद्ध हो सकता है।
5)नवम भाव उच्च शिक्षा का कारक भाव होता है। यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक को उच्चतम शिक्षा की प्राप्ति होती है।
6) नवम भाव यात्रा का कारक भाव होता है। यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक की लंबी यात्रा संभावित होती है। यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में द्वादशेश या सप्तमेश से संबंध स्थापित करता है, तब जातक की विदेश यात्रा संभव होती है।
7) नवम भाव प्रसिद्धि का कारक भाव होता है। यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो, तब जातक अपने अच्छे गुणों के कारण प्रसिद्ध हो सकता है। यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक को बहुत ही ज्यादा प्रसिद्धि प्राप्त होती है। जातक दयालु और सम्मानित व्यक्ति होता है। जातक को समाज में अच्छी मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। जातक को सरकार और प्रशासन से सम्मान प्राप्त होता है।
8)यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक को सभी प्रकार की सांसारिक सुख सुविधा प्राप्त होती है। जातक को उत्तम सुख प्राप्त होता है। जातक दीर्घायु हो सकता है। जातक बुद्धिमान व्यक्ति होता है।
9) यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक को उत्तम संतान सुख की प्राप्ति होती है। जातक के संतान जातक के लिए भी प्रसिद्धि लेकर आते हैं।
10) यदि नवम भाव का स्वामी प्रथम भाव के स्वामी के साथ प्रथम भाव में स्थित हो तब यह एक उत्तम राजयोग का निर्माण करता है। जातक को उत्तम नेम और फेम की प्राप्ति होती है। जातक धनी और समृद्ध होता है। जातक को सभी प्रकार के सांसारिक सुख सुविधा की प्राप्ति होती है। जातक को उत्तम सामाजिक मान और प्रतिष्ठा की होती है। जातक को सरकार से सहायता प्राप्त होती है। जातक को उत्तम सरकारी पद प्राप्त होता है। जातक को अपने पिता का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।