कुंडली के द्वितीय भाव में अष्टमेश का प्रभाव
1)कुंडली के द्वितीय भाव में अष्टमेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम अष्टम भाव और द्वितीय भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। अष्टम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से सप्तम भाव में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का सप्तम भाव में क्या फल होता है, हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।
2) द्वितीय भाव मारक भाव होता है, अष्टम भाव आयु का कारक भाव होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब यह जातक की आयु के लिए शुभ नहीं माना जाता है। अष्टम भाव का स्वामी स्वयं के भाव से सप्तम भाव में स्थित है, अतः यह अष्टम भाव के कारकों के लिए भी शुभ नहीं माना जा सकता है। अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित होने के कारण द्वितीय भाव के मारक प्रभाव को भी बली करता है।
3)अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब यह लंबी चलने वाली बीमारी या लाइलाज बीमारी का कारण हो सकता है। साथ ही यह जातक को गंभीर प्रकृति को भी रोक देने में सक्षम है। अष्टम भाव गुप्त रोगों का होता है। द्वितीय भाव मारक भाव होता है। अतः जातक की मृत्यु गुप्त रोग के कारण भी हो सकती है। द्वितीय भाव धन का भाव होता है। अष्टमेश का द्वितीय भाव में स्थित होने के कारण जातक को रोगों के इलाज में धन की हानि होने की भी संभावना होती है। जातक के परिवार को भी विभिन्न प्रकार के रोगों से दो-चार होना पड़ता है और उनके इलाज में जातक के धन का नाश होने की संभावना बनती है।
4) द्वितीय भाव दातों, स्वाद, भोजन, नेत्र, वाणी इत्यादि का कारक होता है। अष्टम भाव लंबी चलने वाली बीमारी का कारक होता है। अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक के इन सभी द्वितीय भाव से संबंधित कारक को हानि पहुंचने की संभावना होती है। जातक आंखों की बीमारी से परेशान रह सकता है। जातक दातों की बीमारी या दातों के खराब संरचना के कारण परेशान रह सकता है। जातक जातक की खाने पीने की आदत अच्छी नहीं हो सकती है। जातक को स्वाद से संबंधित समस्या हो सकती है।
5) द्वितीय भाव जाति के वाणी और संस्कार से संबंधित होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो, तब जातक को वाणी से संबंधित समस्या हो सकती है। जातक का बोली चाली अच्छा नहीं होगा। जातक झूठा और कठोर प्रवृत्ति का वचन बोलने वाला व्यक्ति होगा। यदि कुंडली में बुध भी पीड़ित हो तब जातक को वाणी से संबंधित समस्या हो सकती है। द्वितीय भाव संस्कार से संबंधित होता है, यदि अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक का संस्कार उत्तम नहीं होता है। जातक बोलने में संस्कारी नहीं होता है।
6) द्वितीय भाव धन से संबंधित होता है। अष्टम भाव हानि या नाश से संबंधित होता है। अतः सामान्य परिस्थिति में अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में धन के लिए उत्तम नहीं माना जा सकता है। जातक फाइनेंशियल क्राइसिस से परेशान रह सकता है। जातक को धन की हानि की भी संभावना होती है। जातक अपने धन या संपत्ति से उचित लाभ नहीं कमा पाता है। जातक अपने शत्रुओं या छुपे हुए शत्रु के कारण परेशानियों का सामना करता है। जातक को चोरों के द्वारा भी हानि की संभावना होती है। जातक अपने पारिवारिक धन को भी प्राप्त करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जातक के पारिवारिक धन के नाश की भी संभावना हो सकती है। यदि अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में शुभ स्थिति में हो तब जातक के छुपे हुए स्त्रोतों से धन लाभ होने की संभावना होती है। जातक को अचानक से भी धन लाभ हो सकता है। जातक अनैतिक या गैरकानूनी कार्यो से भी धन अर्जित कर सकता है।
7) अष्टम भाव और द्वितीय भाव दोनों के जातक के वैवाहिक जीवन में महत्वपूर्ण रोल होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब यह अष्टम भाव और द्वितीय भाव दोनों को प्रभावित करता हैं। यह जातक के वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। पति और पत्नी के मध्य विवाद हो सकते हैं, लड़ाई झगड़े हो सकते हैं, दोनों को एक दूसरे को समझने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। यदि अष्टमेश द्वितीय भाव में पीड़ित हो तब यह अलगाव, तलाक या जीवन साथी की मृत्यु का भी कारण हो सकता है। जातक के एक से अधिक विवाह की भी संभावना हो सकती है। साथ ही जातक कामुक प्रवृत्ति का हो सकता है और जातक का चरित्र उत्तम नहीं होता है।
8) अष्टम भाव अलगाव का कारक भाव होता है। द्वितीय भाव परिवार का कारक होता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में स्थित हो तब जातक को अपने परिवार से अलगाव का सामना करना पड़ सकता है। जातक अपने परिवार से दूर स्थित किसी निवास पर स्थान पर निवास कर सकता है।
9)यदि अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव के स्वामी के साथ द्वितीय भाव में स्थित हो और शुभ स्थिति में हो तब जातक गुप्त तरीके से अच्छा धन अर्जित करता है। यदि अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में पीड़ित हो तब यह जातक के लिए किसी भी स्थिति में शुभ नहीं माना जा सकता है। जातक को धन से संबंधित समस्या हो सकती है, परिवार से संबंधित समस्या हो सकती है। जातक को अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।जातक का जीवन संघर्ष पूर्ण और उथल-पुथल से भरपूर रहता है ।