कुंडली के तृतीय भाव में द्वितीयेश का प्रभाव
1) कुंडली के द्वितीय भाव में तृतीय भाव में द्वितीयेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम द्वितीय भाव और तृतीय भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। जैसा कि हम देख रहे हैं कि द्वितीय भाव स्वयं से द्वितीय स्थान में है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का द्वितीय भाव में क्या प्रभाव होता है इसकी भी जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।
2) द्वितीय भाव का स्वामी तृतीय भाव में है अर्थात द्वितीय से द्वितीय भाव में, अतः भावत भावम सूत्र के अनुसार द्वितीय भाव के स्वामी अपने भाव से द्वितीय में स्थित होने के कारण द्वितीय भाव को नैसर्गिक बल प्राप्त होगा और द्वितीय भाव के शुभ फलों में वृद्धि होगी। अतः हम कह सकते हैं कि जातक धनी होगा। जातक की वाणी कम होगी। जातक के चेहरे पर नैसर्गिक रूप से आकर्षण होगा।
3) तृतीय भाव जातक की क्षमता से संबंधित होता है। अतः जब द्वितीय भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक अपनी खुद की क्षमता और सामर्थ्य की बदौलत उत्तम धन अर्जित करता है।
4) तृतीय भाव जातक के छोटे भाई से संबंधित होता है और धन के भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित है। अतः हम कह सकते हैं कि जातक छोटे भाई की मदद से धन अर्जित करेगा। जातक के अनुज जातक को लाभ अर्जित करने में सहायक सिद्ध होंगे।
5) द्वितीय भाव जातक की वाणी से संबंधित होता है, तृतीय भाव कम्युनिकेशन या संवाद से संबंधित होता है। अतः द्वितीय भाव का स्वामी जब तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक एक उत्तम वक्ता हो सकता है। जातक की आवाज उत्तम हो सकती है। जातक एक अच्छा कवि या गीतकार हो सकता है। जातक अपने संवाद की कला के से भी धन अर्जित कर सकता है। जातक अपने गायन की क्षमता से भी धन अर्जित करता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी द्वितीय भाव से संबंध स्थापित करें और साथ में शुक्र भी द्वितीय भाव से संबंध स्थापित करें तब जातक निश्चित ही एक अच्छा गीत कार्य कभी हो सकता है। यदि यह योग उत्तम स्थिति में हो तब जातक एक प्रसिद्ध संगीतकार या गीतकार भी हो सकता है। जातक अपनी वाणी से लोगों को आकर्षित करने में सक्षम होगा। जातक एक उत्तम कलाकार हो सकता है।
6) द्वितीय भाव मारक भी होता है और द्वितीयेश मारकेश भी होता है। तृतीय भाव आयु का कारक भाव है। अतः द्वितीय भाव का स्वामी तृतीय भाव में स्थित हो तब यह आयु के लिए शुभ नहीं माना जा सकता है। यदि द्वितीयेश तृतीय भाव में पीड़ित हो तब यह मृत्यु का कारक भी हो सकता है।
7) द्वितीय भाव का स्वामी यदि नैसर्गिक पापी ग्रह हो तब यह तृतीय भाव में शुभ माना जाता है। क्योंकि यह जातक को धनी बनाता है। यह जातक को बहादुर और निर्भीक बनाता है। साथ ही जातक धन अर्जित करने में भी किसी भी प्रकार का रिस्क लेने में सक्षम होता है। जातक का स्टैमिना उत्तम होती है।
8) द्वितीय भाव का स्वामी नैसर्गिक शुभ ग्रह हो तब जातक दयालु और मृदु हृदय वाला व्यक्ति होता है। जातक संवाद में उत्तम और मधुर वचन बोलने वाला होता है। लेकिन जातक धन के मामले में बहुत ज्यादा रिस्क लेने में सक्षम नहीं होता है।
9) द्वितीयेश तृतीय भाव में शुभ और उत्तम स्थिति में हो तब, जातक दयालु और सुखी होता है। जातक लग्जरियस लाइफ स्टाइल जीना पसंद करता है। जातक को उत्तम प्रसिद्धि प्राप्त होती है जातक की आयु अच्छी होती है।
10) द्वितीय भाव तृतीय भाव से द्वादश भाव है। द्वितीयेश तृतीय भाव में पीड़ित हो तब यह अनुज के लिए उत्तम नहीं माना जाता है। साथ ही जातक के कॉन्फिडेंस के लिए भी यह अच्छा नहीं माना जाता है। जातक भय से पीड़ित होगा और उसकी फाइनेंशियल कंडीशन अच्छी नहीं होगी।
11) तृतीय भाव छोटी यात्राओं से भी संबंधित होता है। अतः द्वितीयेश जब तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक को धन अर्जित करने के लिए छोटी मोटी यात्राएं करनी पड़ती है।
12) यदि द्वितीयेश तृतीयेश के साथ तृतीय भाव में स्थित हो तब जातक बहादुर होता है। जातक अपने भाइयों की मदद से उत्तम धन अर्जित करता है। जातक की स्पीकिंग या बोलने की क्षमता बहुत ही अच्छी होगी। जातक अपनी वाणी के दम पर भी उत्तम धन अर्जित करेगा। जातक की शारीरिक क्षमता भी अच्छी होगी। यदि द्वितीयेश तृतीय भाव में पीड़ित हो तब यह जातक के स्वास्थ्य और आयु के लिए उत्तम नहीं माना जा सकता है।