कुंडली के पंचम भाव में द्वितीयेश का प्रभाव

कुंडली के पंचम भाव में द्वितीयेश का प्रभाव

1) कुंडली के पंचम भाव में द्वितीय का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम हम पंचम भाव और द्वितीय भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे।

2) द्वितीय भाव धन से संबंधित होता है, पंचम भाव जातक के पिछले जन्म के पुण्य से संबंधित होता है। यदि द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक धन के मामले में भाग्यशाली होता है। क्योंकि पिछले जन्म के पुण्य को कारण जातक को आसानी से धन से संबंधित कार्यों में सफलता प्राप्त हो जाती है। जातक अपने पैतृक संपत्ति को प्राप्त करता है। यदि द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में पीड़ित हो या पंचम भाव स्वयं ही पीड़ित हो तब यह शुभ प्रभाव को कम करता है।

3) द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव से एकादश भाव पर पूर्ण दृष्टि डालता है, जो कि धन के लिए एक उत्तम धन योग का निर्माण करता है अर्थात जातक उत्तम लाभ प्राप्त करेगा।

4) द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक को लॉटरी, शेयर बाजार, सरकारी सहायता या अचानक से धन लाभ होने की संभावना होती है।

5) पंचम भाव संतान से संबंधित होता है। यदि द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक अपने संतान की सहायता से धन अर्जित करता है। जैसे, संतान उत्पत्ति के बाद जातक की आर्थिक समृद्धि होती है। जातक संतान के नाम से अपना व्यापार कर सकता है। जातक के बच्चे जातक के साथ मिलकर धन अर्जित करते हैं।

6) पंचम भाव द्वितीय भाव से चतुर्थ भाव होता है। जब द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक को अपने धन का सुख प्राप्त होता है। अतः हम कह सकते हैं, जातक को सभी प्रकार के सांसारिक सुख सुविधा प्राप्त होगा। जातक अपने धन से अपने लिए उत्तम सुख-सुविधा के साधन अर्जित करेगा।

7) पंचम भाव मंत्र से संबंधित होता है, द्वितीय भाव वाणी से संबंधित होता है। द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक मंत्र उच्चारण में परिपूर्ण होता है। जातक मंत्रों को सिद्ध करने में सक्षम होता है। जातक को वाक् सिद्धि प्राप्त होती है। द्वितीय भाव परिवार से संबंधित होता है। पंचम भाव ज्ञान से संबंधित होता है। द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक के अपने पारंपरिक पारिवारिक ज्ञान को प्राप्त करने के योग बनते हैं। पंचम भाव वेद और वेदांगा जैसे विषयों का भी कारक भाव है, द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक अपने शास्त्रों के ज्ञान के बदौलत भी धन अर्जित करेगा।

8) द्वितीय भाव चेहरा का कारक होता है। यदि द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक के मुख पर आकर्षण होगा। जातक अपनी सुंदरता के कारण प्रसिद्धि प्राप्त कर सकता है।

9)पंचम भाव भावना और जातक की मानसिकता का कारक भाव होता है। द्वितीय भाव वाणी का भाव होता है, यदि द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक की वाणी से जातक की मानसिकता झलकती है। जातक बोलने में भावुक होता है। जातक अपने आप को अच्छा व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करने का हमेशा प्रयास करता है।

10) पंचम भाव इष्ट देव से संबंधित होता है, पंचम भाव जातक की आस्था से भी संबंधित होता है। यदि द्वितीय भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक धार्मिक गतिविधियों या अपनी आस्था पर धन खर्च करता है।

11) पंचम भाव बुद्धिमता से संबंधित होता है। यदि धन के भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक अपनी बुद्धिमता के दम पर उत्तम धन अर्जित करता है।

12) यदि पंचम भाव का स्वामी द्वितीय भाव के स्वामी के साथ पंचम भाव में स्थित हो तब यह एक उत्तम धन योग का निर्माण करता है। जातक संतान उत्पत्ति के बाद धन के मामले में भाग्यशाली हो सकता है। जातक के बच्चे धनी होंगे। जातक अपने बच्चों की सहायता से उत्तम धन अर्जित करेगा। जातक बुद्धि से संबंधित कार्यों में या अपने नेचुरल टैलेंट के दम पर धन अर्जित करेगा। जातक को सरकार से सहायता प्राप्त होगी।

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