कुंडली के प्रथम भाव में तृतीयेश का प्रभाव
1)कुंडली के प्रथम भाव में तृतीयेश का प्रभाव जानने के लिए सर्वप्रथम प्रथम भाव और तृतीय भाव के नैसर्गिक कारक के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे। तृतीय भाव का स्वामी स्वंय के भाव से एकादश भाव में स्थित है, अतः प्रथम भाव के स्वामी का एकादश भाव में क्या फल होता है हम इसके बारे में भी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
2) तृतीय भाव क्षमता और साहस का अभाव होता है जब तृतीय भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक बहादुर और उत्तम शारीरिक क्षमता वाला व्यक्ति होता है। जातक की शारीरिक कद काठी उत्तम होती है। यदि तृतीयेश लग्न में पीड़ित हो तब जातक को स्वास्थ्य से संबंधित समस्या हो सकती है। सामान्यतः प्रथम भाव में स्थित तृतीयेश, जातक को उत्तम मानसिक क्षमता देता है।
3) तृतीय भाव स्वंय की क्षमता और स्वयं की शक्ति या खुद की मेहनत से संबंधित होता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो तब जातक स्वंय की मेहनत के बदौलत अपना जीवन जीता है या खुद की जीविका चलाता है। जातक कड़ी मेहनत करने में कभी हिचकिचाना नहीं है। जातक हमेशा आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करता है। जातक अपनी आसपास एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयास करता है जहां पर एक राजा की तरह सम्मान प्राप्त करें और सभी व्यक्ति उसकी बातों का आदर करें।
4) तृतीय भाव छोटे भाई बहनों से संबंधित होता है। यदि तृतीय भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो तब जातक या तो अपने भाइयों या बहनों में सबसे बड़ा या सबसे छोटा होता है।
5)तृतीय भाव अनुज से संबंधित होता है और तृतीय भाव का स्वामी स्वयं के भाव से एकादश स्थान में स्थित है। अतः यह अनुज के लिए उत्तम माना जा सकता है। जातक के अनुज धनी और समृद्ध व्यक्ति होंगे। समाज में उनकी उत्तम प्रतिष्ठा होगी। जातक अपने भाइयों की सहायता करेगा। जातक के भाई बहनों की संख्या अच्छी होगी। जातक अपने भाई बहनों में प्रसिद्ध होगा।
6) प्रथम भाव में स्थित तृतीयेश जातक को बहादुर और शक्तिशाली बनाता है। लेकिन इसका एक बुरा प्रभाव होता है कि जातक का स्वभाव बदला लेने वाला होता है।
7) तृतीय भाव संवाद से संबंधित होता है। तृतीय भाव का स्वामी प्रथम भाव में स्थित हो तब जातक संवाद कुशल व्यक्ति होता है। जातक में नैसर्गिक रूप से कलाकार वाली क्वालिटी होती है, जैसे जातक गाने में, डांस करने में ,नाटक करने में ,एक्टिंग करने में एक्सपर्ट हो सकता है।
8) तृतीय भाव छोटी यात्राओं से संबंधित होता है। तृतीय भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो तब जातक को छोटी मोटी अनेकों यात्राएं संभव होती हैं।
9) तृतीय भाग दूः स्थान होता है और तृतीय भाव का स्वामी लग्न में स्थित है, तब यह जातक को स्वास्थ्य से संबंधित समस्या दे सकता है। ऐसा देखा गया है कि जातक को बचपन में स्वास्थ्य से संबंधित समस्या होती है और जैसे-जैसे जातक की आयु बढ़ती है वैसे-वैसे जातक के स्वास्थ्य में सुधार आता जाता है।
10)यदि तृतीय भाव का स्वामी लग्न में लग्नेश के साथ स्थित हो तब जातक बहुत ही बहादुर और स्वतंत्र विचारों वाला व्यक्ति होता है। जातक आत्मनिर्भर होता है। जातक अपने विचारों को किसी भी प्रकार लागू करना चाहता है। जातक पावरफुल होता है। साथ ही जातक शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होता है। जातक अपने शत्रुओं का को बुरी तरह कुचल देता है। जातक की फाइनेंसियल स्थिति उसके खुद की मेहनत के दम पर दिन प्रतिदिन सुधरती जाती है। यदि तृतीयेश लग्न में पीड़ित हो तब उत्तम प्रभाव का ह्रास होता है और बुरे प्रभाव बढ़ जाता हैं।